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Thursday, September 24, 2009

भावनायें




सृष्टि का आधार है गृहस्त आश्रम और सुखी गृहस्त का आधार है प्रेम एवं सहानुभुति ! घर परिवार में मनुष्य को प्रेम -सहानुभूती चाहिए !भावनायें संबंधों को मजबूत करने में बहुत काम आती हैं , बच्चे के जीवन में माँ बाप के वात्सल्य के बिना बहुत कुछ अविकसित रह जाता है !जहां प्रेम है वहां समर्पण भी है !शादी के समय वर कन्या एक दुसरे को हार पहनाते हैं , अगर उस हार के अन्दर का धागा टूट जाए तो फूल बिखर जाते हैं ! जैसे वह हार नहीं रहता ऐसे ही गृहस्त जीवन प्रेम के धागे से बंधा रहता है और प्रेम टूट गया तो परिवार बिखर गया !घर परिवार में प्रेम नहीं तो व्यक्ति कितना ज्ञानी ,कितना ध्यानी और कितना ही बली और बहादुर क्यों न हो मिट जायेगा !

Tuesday, September 22, 2009

अमृत वचन



"महानता जब आपके अन्दर जागती है तो आप नीचा कुछ भी कार्य नहीं करेगें। ऐसा कुछ भी नहीं करेंगें जिससे आपको खुद भी निराशा हो।

इसलिए ध्यान रखें जैसे जैसे हम प्रभु के निकट होते जाते है हमारे अन्दर एक पूर्णता आती है , हमारा अधूरापन दूर होता है,

हमारी सम्पूर्णता जाग्रत होने लग जाती है।"

परम पूज्य सुधाँशुजी महाराज

"Nobility will not let you do anything which is lowliness and inferior. You will also not do anything which brings regret and discontent.

So keep it in mind, having a close relation with God brings wholeness and totality in us. Scarcity and imperfection fade away and totality

awakens."

His Holiness Sudhanshuji Maharaj

Humble Devotee

Praveen Verma







Saturday, September 19, 2009

भूल






  • भूल होना मनुष्य की प्रकृति है ! भूल को भूल मानकर सुधार करना संस्कृति है ! भूल को भूल न मानना विकृति है जो की व्यक्ति को पतन की और ले जाती है !

Saturday, September 12, 2009

पारस मणी






  • यदि आपने पात्रता सिद्ध करदी तो गुरु से सब कुछ ले सकते हो ! पारस मणि से भी कीमती हैं गुरु !